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Kale Kauwa Kale | Daksh Karki | Nitesh Bisht | Uttaraini Special Song 2020

Duration: 04:07Views: 2.1MLikes: 62.3KDate Created: Jan, 2020

Channel: Pappu Karki

Category: Music

Tags: pahadi songpappu karkinitesh bishtuttaraini kautikkids songkavita karkikumauni songkale kauwabest song 2020haldwanidaksh karkipk entertainment

Description: Singer : Daksh Karki Lyrics, Composition & Music : Nitesh Bisht Recording Studio : PK Studio, Haldwani (Nainital) Executive Producer : Kavita Karki Special Thanks : PK Entertainment Group, all viewers and Supporters. ----------------------------------------------------------- मुखड़ा काले कौवा काले, काले कौवा काले घुघुती माला खाले, घुघुती माला खाले तू मेरो बौड़ लिजाले, मैं सुनूँक घ्वड़ दिजाले माघ में पूसै की रोटी, खाले कौवा खाले काले कौवा काले, काले कौवा काले घुघुती माला खाले, घुघुती माला खाले अंतरा 1 त्वी कैनि खवै भे हैमी, उतरैणी कौतिक जूलो गुड्डा-गुड़िया, लड्डू बढ़िया सबै वाँ बटिक ल्यूलो संक्रान्ति दिन को भात, प्यारे कौवा खाले काले कौवा काले, काले कौवा काले घुघुती माला खाले, घुघुती माला खाले अंतरा 2 ऊनै रौ यो दिन यो त्यार, कौवा तू आये हर बार भैबड़ियों कै दिये प्यार, हँसीं-खेली रौ परिवार उड़ी उड़ी ऐजा कौवा, मीठा पूवा खाले काले कौवा काले, काले कौवा काले घुघुती माला खाले, घुघुती माला खाले ----------------------------------------------------------- "घुघुतिया की कथा" उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं में मकर संक्रांति पर 'घुघुतिया' के नाम एक त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार का मुख्य आकर्षण कौवा है। बच्चे इस दिन बनाए गए घुघुते कौवे को खिलाकर कहते हैं- 'काले कौवा काले घुघुति माला खा ले'। एक प्रचलित कथा के अनुसार, जब कुमाऊं में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे। राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी। उनका मंत्री सोचता था कि राजा के बाद राज्य मुझे ही मिलेगा। एक बार राजा कल्याण चंद सपत्नीक बाघनाथ मंदिर में गए और संतान के लिए प्रार्थना की। बाघनाथ की कृपा से उनका एक बेटा हो गया जिसका नाम निर्भयचंद पड़ा। निर्भय को उसकी मां प्यार से 'घुघुति' के नाम से बुलाया करती थी। घुघुति के गले में एक मोती की माला थी जिसमें घुंघुरू लगे हुए थे। इस माला को पहनकर घुघुति बहुत खुश रहता था। जब वह किसी बात पर जिद करता तो उसकी मां उससे कहती कि जिद न कर, नहीं तो मैं माला कौवे को दे दूंगी। उसको डराने के लिए कहती कि 'काले कौवा काले घुघुति माला खा ले'। जब मां के बुलाने पर कौवे आ जाते तो वह उनको कोई चीज खाने को दे देती। धीरे-धीरे घुघुति की कौवों के साथ दोस्ती हो गई। उधर मंत्री, घुघुति को मारने की सोचने लगा ताकि उसी को राजगद्दी मिले। मंत्री ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा। एक दिन जब घुघुति खेल रहा था, तब वह उसे चुप-चाप उठाकर जंगल की ओर के गया तो एक कौवे ने उसे देख लिया और जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा। उसकी आवाज सुनकर घुघुति जोर-जोर से रोने लगा और अपनी माला को उतारकर दिखाने लगा। इतने में सभी कौवे इकट्ठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों पर मंडराने लगे। एक कौवा घुघुति के हाथ से माला झपटकर ले गया। सभी कौवों ने एकसाथ मंत्री और उसके साथियों पर अपनी चोंच और पंजों से हमला बोल दिया। मंत्री और उसके साथी घबराकर वहां से भाग खड़े हुए। घुघुति जंगल में अकेला रह गया। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया तथा सभी कौवे भी उसी पेड़ में बैठ गए। जो कौवा हार लेकर गया था, वह सीधे महल में जाकर एक पेड़ पर माला टांगकर जोर-जोर से बोलने लगा। जब लोगों की नजरें उस पर पड़ीं तो उसने घुघुति की माला घुघुति की मां के सामने डाल दी। माला सभी ने पहचान ली। सबने अनुमान लगाया कि कौवा घुघुति के बारे में कुछ जानता है। राजा और उसके घुडसवार कौवे के पीछे लग गए। कुछ दूर जाकर कौवा एक पेड़ पर बैठ गया। राजा ने देखा कि पेड़ के नीचे उसका बेटा सोया हुआ है। उसने बेटे को उठाया, गले से लगाया और घर को लौट आया। घर लौटने पर जैसे घुघुति की मां के प्राण लौट आए। मां ने घुघुति की माला दिखाकर कहा कि आज यह माला नहीं होती तो घुघुति जिंदा नहीं रहता। राजा ने मंत्री और उसके साथियों को मृत्युदंड दे दिया। घुघुति के मिल जाने पर मां ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुति से कहा कि ये पकवान अपने दोस्त कौवों को बुलाकर खिला दे। घुघुति ने कौवों को बुलाकर खाना खिलाया। यह बात धीरे-धीरे सारे कुमाऊं में फैल गई और इसने बच्चों के त्योहार का रूप ले लिया। तब से हर साल इस दिन धूमधाम से इस त्योहार को मनाते हैं। मीठे आटे से यह पकवान बनाया जाता है जिसे 'घुघुत' नाम दिया गया है। इसकी माला बनाकर बच्चे मकर संक्रांति के दिन अपने गले में डालकर कौवे को बुलाते हैं। #DakshKarki #Uttaraini #Uttarakhand

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